इक इल्तज़ा है तुमसे के मेरे दोस्त बन जाओ
और मुझे महोब्बत न करो
ये तमन्ना है के मेरी ज़िन्दगी में आओ
और मुझे महोब्बत न करो ...... ॥
सिवा तुम्हारे कुछ सोचूँ मैं नहीं
सोचता हूँ बता दूँ मगर
रूबरू जब तुम हो तो कुछ बोलूं मैं नहीं
काश ऐसा हो के मैं तुम, तुम मैं बन जाओ
और मुझे महोब्बत न करो ...... ॥
ये तमन्ना है के मेरी ज़िन्दगी में आओ
और मुझे महोब्बत न करो ...... ॥
अक्सर देखा है
महोब्बत को नाकाम होते हुए
साथ जीने के वादे किए
फिर तनहा रोते हुए .......
जो हमेशा साथ निभाए, वो तो बस दोस्ती है
जो कभी ना रूलाए, वो तो बस दोस्ती है
यूँ ही देखा है बचपन की दोस्ती को बूढा होते हूए
ना किए कभी वादे, पर हर वादे को पूरा होते हूए ..॥
ये तमन्ना है के मेरी ज़िन्दगी मे आओ
और मुझे महोब्बत न करो ...
इक इल्तज़ा है के मेरे दोस्त बन जाओ
और मुझे महोब्बत न करो ...... ॥
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यूँ ही ता उमर मेरा साथ निभाओ
और मुझे महोब्बत न करो ...... ॥
" अतुल "